Tuesday, August 17, 2004

تك بيتها

هلالي جغتائي :

آئينه را بگير و تماشاي خويش كنvvvvvv سوي چمن به عزم تماشا، چه ميروي؟


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مولانا جلال الدين :

آب كم جو، تشنگي آور بدست تا بجوشد آبت از بالا و پست


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بيدل :

آبرو خواهي، مقيم آستان خويش باش اشك را از ديده پا بيرون نهادن خواري است


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سعدي :

آتش از خانهžي همسايهžي درويش مخواه كآنچه بر روزن او ميžگذرد، دودِ دل است


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مهدي سهيلي :

آتش بگير، تا كه بداني چه ميžكشم احساسِ سوختن، به تماشا نميžشود


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كليم كاشي :

آتش دوزخ ز ما، تردامنان رنگي نداشت آنچه ما را سوخت آنجا، خجلتِ تقصير بود


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حافظ :

آخرالامر، گِلِ كوزهžگران خواهي شد حاليا فكر سبو كُن، كه پُر از باده كني


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مردمي مشهدي :

آدمي بايد كه بيحالت نباشد هيچگاه گر لبِ خندان نباشد، چشم گريان هم خوشžست


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صائب تبريزي :

آدمي پير چو شد، حرص جوان ميžگردد خواب در وقت سحرگاه، گران ميžگردد


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سرخوش لاهوري :

آدمي را دشمني بدتر نميžباشد ز مال مغز، آخر بر شكستن ميžدهد بادام را


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مشيرالملك شيرازي :

آرام و عافيت را، گر كس نشانه جويد آن دردَمِ نهنگžست، اين در دهان اژدر


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طاهر وحيدالزماني :

آرزو در طبع پيران، از جوانان هست بيش در خزانْ يك برگ، چندين رنگ پيدا ميžكند


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مولانا جلال الدين :

آسمان شو، ابر شو، باران ببار آب اندر ناودان، نايد به كار


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سالك يزدي :

آشنائي كهنه چون گرديد، بي لذت بُوَد كوزهžي نو، يك دو روزي سرد سازد آب را


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ناصر علي سهرندي :

آفتابي ز كمينِ دلِ ما، جلوه نمود همچو شبنم، همه تن غارتِ ديدار شديم


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حافظ :

آن سفر كرده كه صد قافله دل همره اوست هر كجا هست خدايا، به سلامت دارش


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جمشيدخان تركستاني :

آنانكه با خدنگِ جفاي تو، خو كنند تيري نخورده، تيرِ دگر آرزو كنند


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سعدي :

آنجا كه عشق خيمه زند، جاي عقل نيست غوغا بود دو پاشه اندر ولايتي


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مير معصوم تسلي :

آنچنان كز صفر گردد رتبهžي اعداد بيش پايهžي اين ناكسان، از هيچ بالا رفته است


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مرتضي قليخان شاملو :

آنچنان منتظرم، در رهِ شوق كه اگر زود بيائي، دير است


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صائب تبريزي :

آنچه ميžجست از درختِ واديِ ايمن كليم همتِ منصور، بيžزحمت ز چوبِ دار يافت


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ناشناس :

آندم كه با تو باشم، يكسال هست روزي و آن دم كه بي تو باشم، يكروز هست سالي


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مسيح كاشي :

آنروز كه كارِ همه ميžساخت خداوند ما دير رسيديم و، به جائي نرسيديم


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صائب تبريزي :

آنقدر گرم است بازارِ مكافات عمل چشم اگر بينا بُوَد، هر روز، روزِ محشر است


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صائب تبريزي :

آه اگر مستي نمودي هر حرامي چون شراب آن زمان معلوم ميشد، در جهان هشيار كيست؟


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بيدل :

آه بي تأثير ما را كم مگير هر كجا دودي است آتش در قفاست


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ناشناس :

ابليس كي گذاشت كه ما بندگي كنيم؟ يك دم نشد كه بي سرžِ خر، زندگي كنيم


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بيدل :

اختلاط خلق بر من تهمت الفت نبست همچو بو در طبع رنگ، از رنگها بيگانهžýžžام


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بيدل :

اختلاط خلق نبود بي گزند بزم صحبت، حلقه مار است و بس


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نظام وفا :

اخلاصْ به چاكِ پيرهن نيست اينجا دلِ پاره ميýžپسندند


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تسليم شيرازي :

از بس ز آشنائي مردم رميدهžام دائم تلاشِ معني بيگانه ميžكنم


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بيدل :

از بس سبك ز گلشن هستي گذشتهžايم نشكسته است رنگ گلي از خزان ما


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ناصر علي سهرندي :

از بيابان عدم، تا سرِ بازار وجود به تلاش كفني، آمده عرياني چند


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مسيح شيرازي :

از پريدنهاي رنگ و، از طپيدنهاي دل عاشق بيچاره هر جا هست، رسوا ميžشود


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بيدل :

از ترحم تا مروت، و از مدارا تا وفا هر چه را كردم طلب، ديدم ز عالم رفته است


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صائب تبريزي :

از دانش آنچه داد، كمِ رزق ميžدهد چون آسمان، دُرست حسابي كسي نديد


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صائب تبريزي :

از درِ حق كن طلب، شكسته دلي را شيشه چو بشكست، پيش شيشهžگر آيد


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صائب تبريزي :

از درون تو بُوَد تيره جهان، چون دوزخ دل اگر تيره نباشد، همه دنياست بهشت


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اظهري هندي :

از دشمنان برند شكايت به دوستان چون دوست دشمنžست، شكايت كجا بريم؟


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قاسم بيك حالتي :

از راهِ عشق، خوف و خطر هيچ كم نشد با آنكه كاروان ز پي كاروان گذشت


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بيدل :

از فريب خاكساريهاي خصم ايمن مباش سنگ تا شد مايل افتادگي، مينا شكست


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منصور اصفهاني :

از قامتِ خميدهžي من مگذر اي جوان تير آن زمان بخاك فتد، كز كمان گذشت


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بيدل :

از قبول عام، نتوان زيست مغرور كمال آنچه تحسين ديدهžاي زين خلق، دشنام است و بس


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عبرت نائيني :

از ما مپرس كز چه دل از دست دادهžايم از آنكه برده است دل از دست ما، بپرس


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مولانا جلال الدين :

از محبت، خارها گل ميžشود وز محبت، سركهžها مُل ميžشود


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سنجان خوافي :

از مرگ مينديش و غمِ رزق مخور كاين هر دو، به وقتِ خويش ناچار رسد


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احسان :

از مكافات عمل هيچكس ايمن نبود هر كه را شحنه رها كرد، خدا ميžگيرد


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خواجه شعيب :

از هر چه غير اوست، چرا نگذري؟ [شعيب] كافر براي خاطرِ بت، از خدا گذشت


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صائب تبريزي :

از هستي ِ دوباره به تنگžاند عارفان تو سادهžلوح، طالبِ عمر دوبارهžاي


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مخبرالسلطنهžي هدايت :

از واعظِ غيرمتعظ، پند شنيدن چون قبلهžنما ساختنِ اهلِ فرنگ است


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وصفي بخارايي :

از سبكروحي دل، تا خبري يافتهžام زندگي بارِ گرانيžست كه بر دوشِ منžست


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طالب آملي :

افروختن و، سوختن و، جامهžدريدن پروانه ز من، شمع ز من، گُل ز من آموخت


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سليم تهراني :

اگر به ميكده منصور بگذرد، داند كه هر كه هست در او، چند مَرده حلاجžست


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حكيم ابوالقاسم فردوسي :

اگر چرخ گردون كشد زينِ تو سرانجام خشتžست، بالين ِ تو


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راقم مشهدي :

اگر چه فرش من از بورياست، طعنه مزن چرا كه؟ خوابگه شير در نيستانžست


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سعدي :

اگر عنقا، ز بيžبرگي بميرد شكار از چنگِ گنجشكان نگيرد


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سعدي :

اگر لذتِ تركِ لذت بداني دگر لذت نفس، لذت نخواني


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صائب تبريزي :

اگرچه از حيا دارد نظر بر پيش پاي خود ولي مژگان شوخش از تهِ دلها خبر دارد


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فريدون گيلاني :

الماسهاي ديدهžي من، مشتري نداشت گوهر شناس بود، فقط آستين من


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صفي عليشاه :

الهي، قفلِ غفلت را كليدي يزيدِ نفسِ ما را، بايزيدي


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بيدل :

امروز پي نام و نشان چند دويدن؟ فردا كه گذشتيد، نه آنيد نه اينيد


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حسنخان شاملو :

امشب به هيچوجه، دلم وا نميشود گويا كه خاطرِ كسي از من گرفته است


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اسير رازي :

اميد وصل تو نگذاشت، تا دهم جان را وگر نه روزِ فراق تو، مردن آسان بود


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بيدل :

انديشه سرنگون شد، سعي خرد جنون شد دل هم تپيد و خون شد، تا فهم راز كردم


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ذوقي اردستاني :

انگشت مزن بر دلِ پر حوصلهýžي ما بگذار كه سربسته بماند، گِلهžي ما


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محمد علي صاعدي :

انگشت هم شود گِرهžي كارِ تيرهžبخت روز بلا، بد از در و ديوار ميžرسد


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بيدل :

اوج دولت سفله طبعان را دو روزي بيش نيست خاك اگر امروز بر چرخ است، فردا زيرپاست


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بيدل :

اوج عزت نيست بيدل دلنشين همتم پرتو خورشيدم، احرام تنزل بستهžام


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ميرزا نوري :

اول از روزنهžي خانه برون آر سري آنقدر تاب ندارم كه دري باز كني


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عبدالرحمان جامي :

اول همه تو بودي و، آخر همه توئي اين لافِ هستيِ دگران، در ميانه چيست؟


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آذر بيگدلي :

اولم خنده، ز بيžدردي بود آخرم، گريه ز بيžدرماني


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فروغي بسطامي :

اولم رام نمودي به دل آراميها آخرم سوختي از حسرتِ ناكاميها


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اقبال لاهوري :

اي برادر من ترا از زندگي دادم نشان خواب را مرگِ سبك دادن، مرگ را خوابِ گران


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مولانا جلال الدين :

اي برادر، تو فقط انديشهžاي مابقي، تو استخوان و ريشهžاي


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بيدل :

اي بي خبر ز صاف دلان احتراز چيست؟ زنگي است آن كه آينه روز سياه اوست


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بيدل :

اي خوش آن شوق كه از لذت بيžعافيتي كشتيم وحشت گرداب ز ساحل ميžداشت


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بيدل :

اي خوش آن عهدي كه در محراب چشم انتظار اشك ما هم گردشي چون سبحه زهاد داشت


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سيف الدين باخرزي :

اي سوختهžي سوختهžي، سوختني عشق آمدني بُود، نه آموختني


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بيدل :

اي نفس مايه! دكانداري هستي تا چند آسمان جنس سلامت به تو نفروخته است


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بيدل :

اي نهال گلشن عبرت به رعنايي مناز شمع، پستي ميžكشد چندان كه قامت ميžكشد


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لساني شيرازي :

اي همنفسان آتشم، از من بگريزيد هر كس كه بُوَد دوست من، دشمنِ خويش است


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شيخ فيضي :

اي همنفسان محفل ِ ما رفتيد، ولي نه از دل ِ ما


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ملاي رومي :

اي هميشه حاجتِ ما را پناه بار ديگر، ما غلط كرديم راه


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بيدل :

ايمن نتوان بود ز همواري ظالم در راستي، افزوني زخم است سنان را


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صائب تبريزي :

اين تخم توبهžاي كه تو در خاك كردهžاي موقوفِ آبياريِ اشكِ ندامت است


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ابوسعيد ابوالخير :

اين عالَم بيžوفا كه من ميžبينم نه ناز تو، نه نيازِ من ميžماند


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بيدل :

اين قدر اشك به ديدار كه حيران گل كرد كه هزار آينهžام بر سر مژگان گل كرد


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مهديقلي هدايت :

اينكه شمعِ تو، نميžگيرد فروغ از دروغžست از دروغžست از دروغ


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صائب تبريزي :

اينكه گاهي ميزدم بر آب و آتش خويش را روشني در كارِ مردم بود، مقصودم چو شمع


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سيمين بهبهاني :

اينكه هر سو ميžكشم با خود، نپنداري تنžست گورِ گردانžست و، در او آرزوهاي منžست


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بيدل :

با چنين دردي كه بايد زيست دور از دوستان به كه نپسندد قضا بر هيچ دشمن زندگي


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بيدل :

با درشتان، ظالمان هم بر حساب عبرتند سنگ اگر مرد، است جاي شيشه سندان بشكند


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نجيب شيرازي :

با دوستيت، دوستيِ غير محال است بيžكسْ شود آن كس كه ترا داشته باشد


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غني كشميري :

با سايه تو را نميžپسندم عشقžست و هزار، بدگماني


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بيدل :

با شمع گفتم: از چه سرت ميžدهي به باد؟ گفت: آن سري كه سجده ندارد چنين خوش است


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عبدالقادر بيدل :

با هر كمال، اندكي آشفتگي خوشžست هرچند عقلِ كُل شدهžžاي، بيžجنون مباش


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بيدل :

با همه نوميدي، اقبال سيهžبختان رساست چون شب عصيان، ز مشتاقان صبح رحمتيم


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بيدل :

باطن اين خلق كافر كيش با ظاهر مسنج جمله قرآن در كنارند و صنم در آستين


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بيدل :

بايد از اقتضاي شوق بر سر غفلتم گريست از تو جدا چسان شوم؟ تا طلبم وصال تو


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غروري شيرازي :

بايد كه، تو برنگردي از من برگشتنِ روزگار، سهلžست


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بيدل :

بر بناي دهر از سيل قيامت نگذرد آنچه از روي عرقناك تو بر دلها گذشت


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خاقاني شرواني :

بر ديده من خندي؟ كاينجا ز چه ميžگِريد خندند بر آن ديده، كاينجا نشود گريان


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بيدل :

بر رفيقان بيدل از مقصد چه سان آرم خبر؟ من كه خود را نيز تا آن جا رسم، گم ميžكنم


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باقر تبريزي :

بر زمين نتوان فكندن هر كه را برداشت عشق صورت منصور را، بردار ميžبايد كشيد


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بيدل :

بر صفاي دل زاهد اين قدر چه ميžنازي؟ هر چه آينه گرديد باب خودفروشان شد


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بيدل :

بر صفحه آتش زده عمر منازيد فرصت چقدر سبحه شمار است ببينيد


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عماد خراساني :

بر ما گذشت نيك و بد، اما تو روزگار فكري به حال خويش كن، اين روزگار نيست


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ناشناس :

بر مال و جمال خويشتن، غره مباش كآن را به شبي برند و، اين را به تبي


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بيدل :

بر ندارد ننگ افسردن دل آزادگان شعله بيتاب ما را آرميدن مردن است


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بيدل :

بر نيايد تا ابد از حيرت شكر نگاه هر كه، چون تصوير، بر نقاش چشمي وا كند


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ناشناس :

بر نيايد، اين دو كار از هيچ فرد مردي از نامرد و، نامردي ز مرد


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بيدل :

برق آفت لمعه در بي ضبطي اسرار داشت نعره منصور تا گردن فرازد دار داشت


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بيدل :

بزم از دل گداخته لبريز ميžشود مينا اگر نكنند ز سنگ مزار ما


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بيدل :

بس كه در ميزان هستي سنگ قدرم بيش بود در عدم با كوه ميžسنجند اعمال مرا


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بيدل :

بس كه مردم دامن احسان زهم واچيدهžاند بيدل از خست كسي را سايه ديوار نيست


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بيدل :

بستهžام چشم از خود و سير دو عالم ميžكنم اين چه پرواز است؟ يا رب! در پر نگشودهžام


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اشرف :

بسكه حرف حق كسي در دهر نتواند شنيد گيرد اول در اذان گفتن، مؤذن گوش را


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بيدل :

بسمل ما بس كه از ذوق شهادت ميžتپد تيغ قاتل ميžشمارد فرصت تكبير را


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دقيقي مروزي :

بعد مردن به تو معلوم شود رنج حيات رهرو آن لحظه بنالد، كه بمنزل برسد


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بيدل :

بگذار تا ز خاك سيه سرمهžاش كشند چشمي كه محو صنعت بيچون نميžشود


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علي اطهري كرماني :

بگذار تا، به بينمش اكنون كه ميžرود اي اشك از چه راهِ تماشا گرفتهžاي؟


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بيدل :

به آستان تو عهد غبار من اين است كه گر سپهر شوم، جز به خاك ننشينم


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بيدل :

به اين توفان ندانم در تمناي كه ميžگريم كه سيل اشك من در قعر دريا راند ساحل را


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بيدل :

به اين سستي كه ميžبينم ز بخت نارسا بيدل كشد نقاش هم مشكل به دامان تو دست من


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ناشناس :

به تمول نرسد، هر كه نشد اهل فساد تا كه دندان نخورد كِرم، مطلاّ نشود


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سراج الدين قمري :

به جامه فخر مكن، بر برهنگيمْ مخند كه سهم بيش بُوَد، تيغهاي عريان را


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بيدل :

به جهد، مسند عزت نميžشود حاصل نميžتوان به فلك بيدل از دويدن رفت


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بيدل :

به چشم عبرت اگر بنگري نخواهي ديد ز جامه جز كفن، از خانهžها بغير قبور


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بيدل :

به حرف و صوت اين محفل ندارم نسبتي بيدل خموشي كردهžام روشن، چراغ كنج ادراكم


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طالب آملي :

به حشر تنْ به جحيم افكنمْ نخستين گام دل و دماغِ رسَنْ بازيِ صراطم نيست


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سعدي :

به حلاوت بخورم زهر، كه شاهد ساقيžžست به ارادت ببرم درد، كه درمان هم از اوست


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ملا محمد باقر مجلسي :

به خوابِ عدم، راحتي داشتيم ازين خوابِ، ما را كه بيدار كرد؟


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بيدل :

به خيال چشم كه ميžزند قدح جنون دل تنگ ما؟ كه هزار ميكده ميžدود به ركاب گردش رنگ ما


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بيدل :

به دل شكسته از اين چمن زدهžايم بال گذشتني كه شتاب اگر همه خون شود، نرسد به گرد درنگ ما


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بيدل :

به دير و كعبه كارت چيست بيدل؟ اگر فهميدهžاي دل خانه كيست


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محمد علي بهمني :

به شب نشيني خرچنگهاي مُردابي چگونه رقص كند، ماهي زلال پرست؟


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بيدل :

به عالمي كه زند موج شعله مجمر دل ز چشمك شرري بيش نيست آتش طور


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دكتر رعدي آذرخشي :

به عشق كوش، كه تا در دل ِتو ره نكند نه ماجراي وجودي، نه وحشت عدمي


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فرج الله شبستري :

به غير سينهžي دريادلان، نگنجد عشق براي بحر، خدا آفريده طوفان را


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شاني تكلو :

به فصل لاله و گُل، خواستم كه ميžنوشم ز جام تا بقدح ريختم، بهار گذشت


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بيدل :

به قدر نفي ما آماده است اثبات يكتايي كتان چندان كه تارش بگسلد در ماهتاب افتد


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بيدل :

به گردون گر رسم، از سجده شوقت نيم غافل چو ماه نوجبيني خفته در محراب ابرويم


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عارف گيلاني :

به نوبه هم نشود دورِ آسمانْ به مُرادم در آسياي فلك، يك جو اعتبار ندارم


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بيدل :

به هر افسردگي از تهمت بيدردي آزادم چو تار ساز در هر جا كه باشم ناله بر دوشم


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محسن تتوي :

به يك اشك ندامت جُرم عالم ميžتوان شستن به چشم خويش ديدمْ وسعتِ درياي رحمت را


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عبدالعزيز ازبك :

بهر چمن كه رسيدي، گلي بچين و برو به پاي گل منشين آنقدر، كه خار شوي


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نادم جاجرمي :

بهر كه جور نكردي، نميžتوانستي تو آن نئي كه جفائي تواني و، نكني


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پورياي ولي :

بهشت و دوزخت، با توست در پوست چرا بيرون ز خود ميžجوئي، اي دوست؟


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بيدل :

بوالهوس از سبكسري حفظ سخن نميžكند در قفس حبابها باد، وطن نميžكند


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صائب تبريزي :

بوْد از موي سپيد، اميد بيداري مرا بالِش پَر گشت آنهم بهر خوابِ غفلتم


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ناصر علي سهرندي :

بي دردـ وا نشد دلِ غفلت گرفتهžام قفلي كه زنگ بست، شكستنْ كليدِ اوست


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بيدل :

بي نشان بود اين چمن گر وسعتي ميžداشت دل رنگ مي بيرون نشست از بس كه مينا تنگ بود


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لساني شيرازي :

بيا كه گريهžي من آنقدر زمين نگذاشت كه در فراق تو خاكي، به سر توان كردن


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عبدالرحمان جامي :

بيا و همت پروانه بين، كه خود را سوخت نخواست سري ازين انجمن بَرَد بيرون


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افسر قاجار :

بيžپرده به بيني رُخ معشوق ازل را آنروز كه از پردهžي پندار، درآئي


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بيدل :

بيدل از اميد خلد قطع تو هم خوش است جز دل آسوده نيست باغ ارم داشتن


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بيدل :

بيدل از شب پره كيفيت خورشيد مپرس حق نهان نيست، ولي خيره نگاهان كورند


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بيدل :

بيدل به سعد و نحس جهان نيست كار ما طفلان دلي به شنبه و آدينه بستهžاند


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بيدل :

بيدل به هر كجا رگ ابري نشان دهند در ماتم حسين و حسن گريه ميžكند


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بيدل :

بيدل، از انديشه اوهام باطل سوختم بر سر داغم فشان خاكستر منصور را


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جلال اسير :

بيگانگي نگر، كه من و يار، چون دو چشم همسايهžايم و، خانهžي هم را نديدهžايم


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بيدل :

پاس اسرار محبت داشتن آسان نبود گنج، ويران كرد بيدل خانه آباد ما


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آيتي يزدي :

پدرم داد به نوروز، مرا جامهžي نو بردم و بهرِ مي كهنه نهادم به گِرو


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بيدل :

پر خود نماي كارگه چند و چون مباش در خانهžاي كه سقف ندارد، ستون مباش


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بيكس سبزواري :

پُر معرفتْ از لافِ سخن، مُستغنيžست ظرفي كه پُر است، كم صدا ميžباشد


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ناصر نجفي :

پيش ازين كاري نكرد اميدواريهاي من نااميديهاي من، زين پس مگر كاري كند


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سعيد خلخالي :

پيش عفوت، قلت تقصير ما، تقصير ماست جُرم بيžاندازه، ميžخواهد عطاي بيžحساب


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حاجي محمدžجان قدسي :

تا آب ديده خون نشود، بر زمين مريز در شيشه واگذار، مِي نارسيده را


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بيدل :

تا از كفت عنان نبرد ترك اختيار موصول بارگاه توكل نميžشوي


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بيدل :

تا از گلت جز ايثار رنگي دگر نخندد سر تا قدم چو خورشيد دست كرم برون آ


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كاشفي :

تا بپاي عَلَمِ دار، نياوردش عشق سرِ شوريدهžي منصور، به سامان نرسيد


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بيدل :

تا حيرت خرام تو سامانِ ديده است چندين قيامت از مژهžام قد كشيده است


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صغير اصفهاني :

تا نشكنيم خود، نشود كارِ ما دُرست پنهان بُوَد درستي ما، در شكست ما


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صفي قلي بيك :

تا نكشي دردِ سرِ هيچكس به كه نپرسي، خبر از هيچكس


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بيدل :

تاب و تب قيامت هستي كشيدهžايم از مرگ نيست آن همه تشويش و باك ما


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بيدل :

تپيدم، ناله كردم، داغ گشتم، خاك گرديدم وفا افسانهžها دارد كه ميžبايد شنيد از من


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بيدل :

تخته مشق حوادث كرد ما را عاجزي زخم دندان بيشتر وقف لب زيرينه بود


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شيخ نجم الدين رازي :

ترسيدن هر كه هست، از چشم بد است بيچاره من، از چشم نكو ميžترسم


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بيدل :

تمثال من در آينه پيدا نميžشود در پرده خيال توام نقش بستهžاند


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صابر همداني :

تنها نه كاسهžي سرِ ما كوزه ميžشود اين كاسه كوزه، بر سرِ دنيا شكسته است


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نوذر پرنگ :

تهمتِ ديوانگي بيخود به مجنون بستهžžاند جز نشان پاي ما، در كوچهžي زنجير نيست


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بيدل :

تو خواهي پرده رنگين ساز، خواهي چهره گلگون كن به هر آتش كه باشد، سوختن دارد سپند ما


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بيدل :

تواضعهاي ظالم مكر صيادي بود بيدل كه ميل آهني را خم شدن قلاب ميžسازد


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بيدل :

تيره بختي نفسي از طلبم غافل نيست سايه دايم ز پي شخص، روان ميžباشد


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اميد تهراني :

تيرهžروزان را به چشم كم مبين، در روزگار روشني، آيينه از پهلويِ خاكستر گرفت


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بيدل :

جامه آزادي آسان نيست بر خود دوختن سرو را زين آرزو در جمله اعضا سوزن است


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بيدل :

جز عافيتم نيست به سوداي تو ننگي اي خاك بر آن سركه نيرزد به سنگي


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هلالي جغتائي :

جفا كه با منِ دلخسته ميكني، سهلžست غرض وفاست، كه با مردمِ دگر نكني


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خاشع كشميري :

جلوهžي سر و تو ديديم و زمينžگير شديم آنقدر محو تو گشتيم، كه تصوير شديم


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بيدل :

جنون الرحيلي شش جهت پيچيده عالم را مپرس از كاروان، منزل هم آهنگ جرس دارد


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بيدل :

جود مطلق در كمين سايل است اما چه سود؟ شرم تكليف اجابت دست ما بالا نكرد


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بيدل :

جوش غبار كم نشد از خاك رفتگان منزل رسيده، رنج سفر ميžكشد هنوز


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صائب تبريزي :

چشم در صُنعِ الهي باز كن، لب را ببند بهتر از خواندن بُوَد، ديدنْ خطِ استاد را


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به نقل از: مرحوم مرتضي مطهري :

چگونه شُكر اين نعمت گذارم كه دارم زور و، آزاري ندارم


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بيدل :

چند چون گرداب بايد بود محو پيچ و تاب؟ بر اميد ساحلي چون موج دست و پا زنيد


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قاآني شيرازي :

چند خواهي پيرهن، از بهر تن؟ تن رها كُن، تا نخواهي پيرهن


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بيدل :

چه آغوش است يا رب موجه درياي رحمت را؟ كه هر كس ره ندارد هيچ سو، سوي تو ميžآيد


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ذوقي اردستاني :

چه آفتي تو ندانم؟ كه در جهانْ امروز محبتِ تو، دو كسْ با هم آشنا نگذاشت


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بيدل :

چه امكان است خوابم راه پرواز تپش بندد؟ كه از ننگ فسردنها به بالين نيز پر دارم


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بيدل :

چه تماشاست در اين كوچه كه طفلان سرشك نيسوار مژه از خانه برون ميžآيند


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محمود نادعلي :

چه راه ميزند اين مطربِ مقام شناس؟ كه شيخ گوشهžنشين هم، به سيمِ آخر زد


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بيدل :

چه سان به كعبه توانم كشيد محمل جهد؟ كه راهم از عرق انفعال، گل گرديد


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بيدل :

چه شد زبان تمنا خموشي آهنگ است؟ نگاه نامه سايل بس است سوي كريم


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بيدل :

چه نيرنگ است بيدل برق ديرستان الفت را كه من ميžسوزم و بوي تو ميžآيد ز داغ من


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حكيم نظامي :

چو از زر، تمناي زر بيشتر توانگرتر آنكس، كه درويشžتر


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بدايعي بلخي :

چو از كوهžگيري و، ننهي بجاي سرانجام، كوه اندر آيد ز پاي


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بيدل :

چو بيدل از هوس سير كعبه مستغني است كسي كه گرد تو، يعني به دور دل گرديد


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حافظ :

چو پردهžدار بشمشير ميžزند همه را كسي مقيمِ حريم حرم، نخواهد ماند


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سليم شاملو :

چو تُندبادِ حوادث، شود غبارانگيز پناه مردم بيžدست و پا، چو مژگان باش


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ميرزا مقيم تبريزي :

چو درياي رحمت، تلاطم كند گُنه صاحب خويش را گُم كند


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حبدري تبريزي :

چو ريزم اشك از دل، آه دردآلود ميžخيزد بلي، چون آبْ بر آتش بريزد، دود ميžخيزد


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سرخوش تفرشي :

چو نيست مِهر و وفا، روزگار فاني را به خوشدلي گذران، دور زندگاني را


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بيدل :

چون دود شمع، وحشت ما را سبب مپرس آتش گرفته است پي كاروان ما


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صائب تبريزي :

چون سايهžي مرغانِ هوا، در سفرِ خاك آزار به موري نرسانديم و گذشتيم


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بيدل :

چون سپند از درد و داغ بيكسيžهايم مپرس دود آهي داشتم، رفت و مرا تنها گذاشت


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محمدžخان قبچاقي :

چون شمع، عمر ما همه در تاب و تب گذشت دستي به زير سر ننهاديم و شب گذشت


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صائب تبريزي :

چون شود دشمن ملايم، احتياط از كف مده مكرها در پرده باشد، آبِ زيرِ كاه را


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بيدل :

چون صدا سيرم برون از كوچه زنجير نيست گر ز گيسو بر گرفتم دل، به كاكل بستهžام


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بيدل :

چون كوه، ناله نيز ز ما سر نميžžžكشد از بس كه زير بار گرانجاني خوديم


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آزاد كشميري :

چون لاله سر زديم، درين باغ هفتهžاي رفتيم و داغ ما به دلِ روزگار ماند


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خورشيد بلگرامي :

چون نِكهتِ گل، زين چمن آهسته گذشتيم آگاه نگرديدْ كسي از اثر ما


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غالب تهراني :

چونكه عقل ما، ز عشق آگاه نيست جز كه عشق از عشق گويد، راه نيست


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حزين لاهيجي :

چيزي به بساطِ ما تهيدستان نيست جانيكه تو دادهžاي، فداي تو كنم


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بيدل :

حاصل دل جز ندامت نيست از تعمير جسم بار اين كشتي غرور ناخدا خواهد شكست


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مولانا جلال الدين :

حاصل عمرم، سه سخن بيش نيست خام بُدم، پخته شدم، سوختم


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دامي اصفهاني :

حالِ هيچ آشنا، نميýžپُرسي؟ يا همين حالِ ما، نميžپُرسي؟


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توحيد شيرازي :

حالت سوخته را، سوخته دلْ داند و بس شمع دانست كه جان دادنِ پروانه ز چيست


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شهر آشوب :

حباب آسا چنانْ بر چشمهžي هستي سبك بنشين كه گر چين بر جبين زد از نسيمي، خيمه برچيني


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بيدل :

حذر ز راه محبت كه پر خطرناك است تو مشت خار ضعيفي و شعله بيžباك است


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بيدل :

حذر كن از قرين بد كه در عبرتگه امكان به جرم زشتي يك رو، هزار آيينه رسوا شد


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بيدل :

حرصت آن نيست كه مرگش ز هوس وا دارد در كفن نيز همان دامن دنيا دارد


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صائب تبريزي :

حريص را نكند نعمتِ دو عالم سير هميشه آتشِ سوزنده، اشتها دارد


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بيدل :

حريفِ مردم بد لهجه بودن آسان نيست كسي مباد طرف با عذاب روحاني


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حاجي شريف :

حسرت يكدمِ آب دگراز تيغ تو داشت بر لب تشنهžي هر زخم، كه انگشت زديم


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بيدل :

حيرت حسني است در طبع نگه پرورد ما شش جهت آيينه بالد گر فشاني گرد ما


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بيدل :

خاكستري نماند زما تا هوا برد ديگر كسي چه صرفه ز تاراج ما برد


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سعدي :

خبر دِه به درويش سلطان پرست كه سلطان ز درويش، مسكينžتر است


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آذر بيگدلي :

خدمت ديرين ما بين، ورنه در آغاز عشق هر كه را بيني، دم از مهر و وفائي ميزند


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بيدل :

خفت كش همچشمي اقبال حباب است بيمغزي اگر صاحب افسر شده باشد


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بيدل :

خفتهžاي زير سقف بي ديوار عيش اين خانهžات مبارك باد


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صائب تبريزي :

خنده رسوا ميžنمايد، پستهžي بيžمغز را چون نداري مايه، از لافِ سخن خاموش باش


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فصيحي هروي :

خنده ميžبيني، ولي از گريهžي دل غافلي خانهžي، ما اندرون ابرست و بيرون آفتاب


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ظفر كرماني :

خواهي نشود محتسب از مستيت آگاه اي پخته، زهم ساغريِ خامْ حذر كن


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مهري هروي :

خودسازي پيران، بُوَد افزون ز جوانان تعمير ضرورست، بناهاي كهن را


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شيخ فيضي :

خوش آن كس كه ز عالم، به آرزوي تو رفت به جستجوي تو آمد، به گفتگوي تو رفت


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بيدل :

خوشم به ياد خيالي كه گلبن چمنش گل نظاره در آغوش خواب ميžريزد


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بيدل :

خوشم كه عشق نكرد امتحان پروازم شكسته بالي من در قفس نهان گرديد


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فارسي بواتاني :

خونِ مستان را چو ماه عيد، ميžآرد به جوش گوشهžي ابروي شمشير شهادت را بهžبين


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فضلي جرفادقاني :

خونابه فرستند بهم چشم و دل من چون كاسه كه همسايه بهمسايه فرستد


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بيدل :

دام هستي نيست زنجيري كه نتوان پاره كرد اين قدر افسردگي از همت نامردžماست


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بيدل :

دامن افشاندن ز اسباب جهان بي مدار آن قدرها نيست، اما اندكي بي جرأتيم


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بيدل :

دانا نبود از هنر خويش برومند از ميوه خود بهره محال است شجر را


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محمد صوفي مازندراني :

داني از چيستم چنين مفلس؟ خودفروشي، ز من نميžآيد


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بيدل :

در اين هوسكده هر كس بضاعتي دارد دعاست مايه جمعي كه دستžشان خالي است


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حافظ :

در بزم عيش، يك دو قدح دركش و برو يعني طمع مدار، وصال مدام را


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بيدل :

در بياباني كه ما راه طلب گم كردهžايم كرم شبتابي اگر در جلوه آيد كوكب است


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بيدل :

در بياباني كه ما فكر اقامت كردهžايم ميžرود بر باد مانند صدا كهسارها


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حافظ :

در پس آينه طوطي صفتم داشتهžاند آنچه استاد ازل گفت بگو، ميžگويم


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صائب تبريزي :

در چشم پاك بين نبود رسم امتياز در آفتاب، سايهýي شاه و گدا يكيžست


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ملا محمد امين :

در حقيقت عينكي بهتر ز پشت چشم نيست ديده چون بستي، دو عالم را تماشا ميžكني


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بيدل :

در خرقه نياز گدايان در گهت نازد به شوخي پر طاووس، پينهžها


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هماي شيرازي :

در خور مستي ما، رطل و خم و ساغر نيست ما از آن باده كشانيم، كه دريا زدهžايم


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بيدل :

در داغ دل نهاد بود از رفتگان نشانها اين آتش آگهي داد ما را ز كاروانها


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حافظ :

در ره عشق نشد كس به يقين محرم راز هركسي بر حسب فهم، گماني دارد


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صائب تبريزي :

در ره عشق، به سر تيشه زدن آسان نيست كرد فرهاد، درين مرحله شيرين كاري


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بابر شاه :

در روزگار فتنه بسي ديدهžام، ولي چشم تو فتنهžايžست، كه در روزگار نيست


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حكيم نظامي :

در سر كاري كه درآئي نخست رخنهžي بيرون شدنش كن درست


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فطرت قمي :

در شبستان ازل شمع يكي بيش نبود بزم را از پر پروانه چراغان كردند


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سرخوش :

در عدم هم ز عشق، شوري هست گل گريبان دريده ميžآيد


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تيمور گرگين :

در غنچهžاي هنوز و، دل از خلق ميžبري ايواي اگر! ز غنچه درآيي و گل شوي


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غروري شيرازي :

در فراق دوستان، آخر ز ما چيزي نماند هر كه رفت از هستي ما، پارهžاي با خويش برد


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شيخ علينقي كمرهžاي :

در قطع نخل سركش باغ حياتِ ما چون ارهžي دو سر، نفس اندر كشاكشžست


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دهقان ساماني :

در قيامت كه سر از خاك بدر خواهم كرد باز هم در طلبت، خاك بسر خواهم كرد


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واعظ قزويني :

در گفتن عيب دگران، بسته زبان باش از خوبي خود، عيب نماي دگران باش


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بيدل :

در محبت داغدار كوشش بي حاصلم برق آه من نميžسوزد مگر تأثير را


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بيدل :

در محيط عمر، جان را رهزني جز جسم نيست غرقه را پيراهن خود بس بود دشمن در آب


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صائب تبريزي :

در هر شكن زلف گرهžگير تو داميžست اين سلسله، يك حلقهžžي بيكار ندارد


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عصري تبريزي :

درد عاشق را، دوائي بهتر از معشوق نيست شربت بيماري فرهاد را، شيرين كنيد


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نظيري نيشابوري :

درس معلم ار بُود، زمزمهžي محبتي جمعه به مكتب آورد، طفل گريز پاي را


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بيدل :

دريا تلاطم آينه، صحرا غبار خيز از عافيت چه خشك و چهžتر، دست شستهžاند


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سليم همداني :

درين زمين، چو تو خورشيد طلعتي بودهžست وگرنه ماه، بدور زمين نميžگرديد


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صائب تبريزي :

دست طمع چو پيش كسان ميكني دراز پل بستهžاي كه بگذري از آبروي خويش


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مرتضي طائي :

دست و دلبازي بود عادت سخاوت پيشه را سينه را چاك از پي بذل گهر دارد صدف


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صائب تبريزي :

دستگيري نتوان داشت توقع ز غريق اهل دنيا همه درماندهžتر از يكدگرند


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صائب تبريزي :

دشمن دوست نما را، نتوان كرد علاج شاخه را مرغ چه داند كه قفس خواهد شد؟


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عرفي شيرازي :

دعاي بيžاثري دارم و، هزاران جرم مگر مرا به تهي دستي دعا بخشند


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بهمن صالحي :

دل ار، ز عشق تهي شد، ز سينه بيرون آر كسي پرندهžي جان داده در قفس نگذاشت


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كليم كاشاني :

دل از خم زلف تو برون رفت و نگفتي كاين حلقه ماتم زدگان، نوحهžگري داشت


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بيدل :

دل به قيد جسم از علم يقين بيگانه ماند گنج ما را خاك خورد از بس كه در ويرانه ماند


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بيدل نيشابوري :

دل تنگ و دست تنگ و جهان تنگ و كار تنگ از چهار سو گرفته مرا، روزگار تنگ


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غافل مازندراني :

دل چو خالي شود از عشق، به دورش انداز شيشه بيžباده چو گرديد، شكستن دارد


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صائب تبريزي :

دل خوش مشرب ما داشت جوان عالمرا شد جهان پير، همان روز كه ما پير شديم


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بيدل :

دل خون گشته كه آيينه درد است امروز حيرتي بود كه در روز الستم دادند


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بيدل :

دل هزار آيينه روشن كرد اما پي نبرد فطرت بي نور ما بر معني پيداي خويش


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بيدل :

دل: وفا، بلبل: نوا، واعظ: فسون، عاشق: جنون هر كسي در خورد همت پيشه پيدا ميžكند


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سعدي :

دلايل قوي بايد و معنوي نه رگهاي گردن، به حجت قوي


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بيدل :

دلدار رفت و ديده به حيرت دچار ماند با ما نشان برگ گلي زان بهار ماند


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فرخي يزدي :

دلم از اين خرابيها، بود خوش، زانكه ميدانم خرابي چونكه از حد بگذرد، آباد ميžگردد


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غضنفر قمي :

دلم پر آتش و چشمم پر آب شد هر دو دو خانه وقف تو كردم، خراب شد هر دو


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قصاب كاشاني :

دندان كه در دهان نبود، خنده بدنماست دكان بيžمتاع، چرا واكند كسي؟


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بيدل :

دني به مسند عزت همان دني است نه عالي كه نقش پا به سر بام نيز خوار نشيند


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قصاب كاشاني :

دنيا و آخرت به نگاهي فروختيم سودا چنين خوشžست، كه يكجا كند كسي


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بيدل :

دنيا، الم غفلت و عقبي، غم اعمال آسودگي از ما، دو جهان فاصله دارد


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بيدل :

دهر، توفان دارد از طبع جنون پيماي من قلقلي دزديده است اين بحر از ميناي من


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بيدل :

دو روزي با غم و رنج حوادث صبر كن بيدل جهان آخر چو اشك از ديدهžات يكبار ميžافتد


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نطيري نيشابوري :

دو عالم را بيكبار از دل تنگ برون كرديم، تا جاي تو باشد


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بيدل :

دو همجنسي كه با هم متفق بيني به عالم كو؟ ز مژگان هم مگر در خواب بيني ربط جسماني


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بيدل :

دور است خواب قافله از معني رحيل ورنه نميžشد اين همه بانگ درا بلند


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بيدل :

دوري مقصد به قدر دستگاه جستجوست پا گر از رفتار مانَد جاده منزل ميžشود


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بيدل :

دوريم زان آستان ديوانه كرد اما چه سود؟ آن قدر خاكي كه افشانم به سر، صحرا نداشت


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بيدل :

دوستان! از منش دعا مبريد زندهžام، نامم از حيا مبريد


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بيدل :

ديده در خواب عدم هم مژه بر هم نزند گر بداند كه تماشا چقدر مغتنم است


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نوذر پرنگ :

ديده را قاعدهžي فهم طبيعت آموز خواهي ار فهم كني، معني پيغام سروش؟


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شفائي اصفهاني :

ديدي كه خون ناحق پروانه شمع را چندان امان نداد كه شب را سحر كند


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پروين اعتصامي :

ذره ذره، آنچه داد از من گرفت دير دانستم كه گيتي رهزنžست


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بيدل :

راحت جاويد در ضبط عنان آرزوست بال و پر گر جمع گردد آشياني ميžشود


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بيدل :

راز ما صافي دلان پوشيده نتوان يافتن هر چه دارد خانه آيينه بيرون در است


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ميرزا متين اصفهاني :

راضي به داده باش، كه با سعي خضر هم آب بقا، نصيب سكندر نميžشود


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بيدل :

رسوايي عاشق به ره يار، بهشتي است اي كاش در اين كوچه به چنگ عسس افتم


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وحشي بافقي :

رم دادن صيد خود، از آغاز غلط بود حالا كه رماندي و رميديم، رميديم


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بيدل :

رنج دنيا، فكر عقبي، داغ حرمان، درد دل يك نفس هستي به دوشم عالمي را بار كرد


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مولانا جلال الدين :

رو توكل كن، مجنبان، پا و دست رزق تو بر تو، ز تو عاشقžتر است


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حافظ :

رواق منظر چشم من، آشيانهžي توست كرم نما و فرود آي، خانه خانهžي توست


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صائب تبريزي :

روز سيه مرگ، شود شمع مزارت هر خار، كه از پاي فقيري بدرآري


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بيدل :

روزگار سوختنها خوش كه در دشت جنون هر كجا برقي است نذر مشت خارم كردهžاند


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مولانا جلال الدين :

روزها گر رفت، گو: رو باك نيست تو بمان، اي آنكه جز تو پاك نيست


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ناشناس :

روزي كس كي خورد هرگز كسي؟ زان چوب را آب نتواند فرو بردن، كه رزق آتش است


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رودكي سمرقندي :

ز آمده، شادمان ببايد بود وز گذشته، نكرد بايد ياد


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اوحدي يكتا :

ز آنروي نظير تو نجوئيم،كز اول نقاش چو زد نقش تو، بشكست قلم را


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بيدل :

ز برق جلوهžاش آگه نيم، ليك اين قدر دانم كه عالم چشم خفاشي است نور آفتابش را


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بيدل :

ز بزم مي پرستان بي توقف بگذر اي زاهد كه آن جا هر كه بنشيند، ز ننگ و نام برخيزد


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بيدل :

ز بس مطلوب هر كس بي طلب آماده است اينجا اجابت انفعال از شوخي دست دعا دارد


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بيدل :

ز بلبل و گل اين باغ تا دهند سراغ پر شكسته و رنگ پريده ميžماند


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بيدل :

ز تخته پارهžام اي ناخدا چه ميžپرسي؟ فلك كشيد ز گرداب و بركنارم سوخت


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حكيم قاآني شيرازي :

ز سيم اشك و، زر چهرهžام توان دانست كه شهر عشق، گدايان معتبر دارد


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بيدل :

ز عمر، فرصت آرام چشم نتوان داشت ز برق و باد، وداع شتاب دشوار است


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بيدل :

ز غارتِ ضعفا مايه ميžبرد ظالم ز پهلوي خس و خاشاك، شعله عيّاش است


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بيدل :

ز هستي گر برون تازي، عدم در پيش ميžآيد در اين وادي مقامي نيست، غير از نارسيدنها


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بيدل :

زاهدا، لاف محبت ميžزني، هشيار باش زخم شمشير است اين، خميازه محراب نيست


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بيدل :

زبان شانه ميžگويد به زلف فتنه پيرايت كه با اين سركشيها گرد سر گرديدنت نازم


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شريف قزويني :

زحمت چه ميžكشي پي درمان ما طبيب ما به نميžشويم و، تو بدنام ميžشوي


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رابعهžي بنت كعب :

زشت بايد ديد و، انگاريد خوب زهر بايد خورد و، پنداريد قند


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ميرالهي اسدآبادي :

زمانه بسكه مرا خاكسار مردم كرد به آب ديدهžي من، ميžتوان تيمم كرد


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اقبال لاهوري :

زندگي در صدف خويش گهر ساختن است در دل شعله فرو رفتن و نگداختن است


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صاحبكار [سُهي] :

زنده دلم، سوختنم آرزوست شمعم و، افروختنم آرزوست


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بيدل :

زين گذر كه به كجا دل بندم؟ هر چه را ميžنگرم ميžگذرد


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بيدل :

زين گلستان به حيرت شبنم رسيدهžايم بايد دري به خانه خورشيد باز كرد


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بيدل :

زينهار از صحبت بد طينتان پرهيز كن زشتي يك روز، هزار آيينه را رسوا كند


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بيدل :

زينهار ايمن مباش از اشك دردآلود من گر همه يك شبنم است اين طفل، توفان زاده است


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صائب تبريزي :

سادهžلوحان، زود ميžگيرند رنگ همنشين صحبت طوطي، سخنور ميžكند آئينه را


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بيدل :

ساز عمر رفته جز افسوس، آهنگي نداشت زان همه خوبي كه من ديدم همين افسانه ماند


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بيدل :

سخت ناياب است مطلب، ورنه كوشش كم نبود احتياج از ناžاميدي رنگ استغنا گرفت


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بيدل :

سر بر نياوري چو گهر از سجود جيب گر محرمت كنند كه دل آستان كيست


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بيدل :

سر بلندي خواهي از وضع ادب غافل مباش نشئه بر ميžخيزد از جوشي كه در صهبا نشست


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بيدل :

سر به صد كسوت فرو برديم و عرياني به جاست وضع رسوايي كه ما داريم، گويا سوزن است


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بيدل :

سعد و نحس دهر، بيدل كي دهد تشويش ما؟ همچو طفلان كار ما با شنبه و آدينه نيست


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بيدل :

سنگِ راه خود شمارد كعبه و بتخانه را هر كه چون بيدل طواف گوشه دلها كند


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بيدل :

سوختم از برق نيرنگ برهمن زادهžاي كز رميدن وا كند آغوش و گويد رام رام


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بيدل :

سيلاب سر شكم همه گر يك مژه بالد تا خانه خورشيد، خطر داشته باشد


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شيخ بهائي :

سينه گر خالي ز معشوقي بُوَد سينه نبْوَد، كهنه صندوقي بُوَد


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بهادر يگانه :

سينهžي من گور عشق و آرزوها بود و من زنده بودم روزگاري، در مزار خويشتن


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تسلي شيرازي :

شايد كه گفتگوي تو باشد، در آن ميان هر قصهžاي كه هست به عالم، شنيدنيžست


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بيدل :

شب از رويت سخنهاي بهار اندوده ميžگفتم ز گيسو هر كه ميžپرسيد، مشك سوده ميžگفتم


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فرخي يزدي :

شب چو در بستم و، مست از مي نابش كردم ماه اگر حلقه بدر كوفت، جوابش كردم


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بيدل :

شب چو شمعم وعده ديدار در آتش نشاند تا سحر آيينه از خاكسترم گل كرد و ريخت


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سعدي :

شب فراق نداند كه تا سحر چند است مگر كسي كه به زندان عشق دربند است


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بيدل :

شب وصل است، كنون دامن او محكم دار پاس ناموس ادب وقت دگر خواهي داشت


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بيدل :

شبنم در اين بهار، دليل نشاط نيست صبحي است كز وداع چمن گريه ميžكند


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باقر عليشاه :

شد زندهžي ابد، به جهان كشتهžي غمت جا ندادهžي تو را، به مسيحا چه احتياج؟


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هلالي جغتائي :

شد عمر تمام و، ناتماميم هنوز صدبار بسوختيم و، خاميم هنوز


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حكيم قاآني شيرازي :

شرمنده از آنيم، كه در روز مكافات اندر خور عفو تو، نكرديم گناهي


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بيدل :

شعلهžاي خواست به مهماني خاشاك اجازت گفت: در من نتوان يافت مرا گر تو بيايي


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حالتي تركمان :

شكسته بالžتر از من، در آشيان تو نيست دلم خوشžست كه نامم كبوتر حرم است


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بيدل :

شكوه مردم ز گردون بيدل از كم وسعتي است ناله در پرواز آيد چون قفس تنگي كند


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بيدل :

شمع ماتمخانه يأسم، ز احوالم مپرس بي تو در آغوش مژگان سوخت ديدنهاي من


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بيدل :

شه سرير يقين شد كسي كه چون حلاج فراشت از علمžدار، رايت منصور


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شوكت بخارائي :

شيرِ انوار تجلي را، چو ميžكردند صاف دُردِ آن مهتاب و، شهد آن بناگوش تو شد


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دهقان ساماني :

صبر توقع مكن ز دل، كه نخواهند باج ز بيچارهžاي، كه آه ندارد


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بيدل :

صبر كن اي شيشه بر سنگ جفاي محتسب گردن اين دشمن عشرت، خدا خواهد شكست


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بيدل :

صحبت بيخردان آفت روحاني بود آه اگر نوح نميžديد ز توفان مددي


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بيدل :

صحرا به رم ناز چه محمل نظر افكند كانديشه پريخانه شد از رقص غبارش


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واعظ قزويني :

صد حيف كه ما پير جهانديده نبوديم روزي كه رسيديم، به ايام جواني


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بيدل :

صداي التفاتي از سر اين خوان نميžجوشد لب گوري مگر وا گردد و گويد بيا اين جا


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شيخ علاء الدوله سمناني :

صدخانه اگر به طاعت آباد كني به ز آن نبود، كه خاطري شاد كني


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محمد حسين شهرياري :

صفائي بود ديشب با خيالت خلوت ما را ولي من باز پنهاني، ترا هم آرزو كردم


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بيدل :

صفاي دل نتوان يافت از محبت دنيا كه در شمردن زر دست زر شمار سياه است


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محمدžقلي سليم :

صورت نبست در دل من كينهžي كسي آيينه هرچه ديد، فراموش ميžكند


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بيدل :

صورت وهمي به هستي متهم داريم ما چون حباب آينه بر طاق عدم داريم ما


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نشاط اصفهاني :

طاعت ار دست نيايد، گنهي بايد كرد در دل دوست، بهر حيله رهي بايد كرد


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بيدل :

طالب وصليم، ما را با تسلي كار نيست نالهžگر از پا نشيند، اشك ميžافتد به راه


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بيدل :

طراوت آرزو داري ز قيد جسم بيرون آ كه سر سبزي نبيند دانه تا زيرزمين باشد


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شوريده شيرازي :

طعنهžي خلق و جفاي فلك و جور رقيب جمله هيچند، اگر يار موافق باشد


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بيدل :

طلسم جسم، گردد مانع پرواز روحاني چو بوي گل كه ديوار چمن گيرد عنانش را


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بيدل :

طواف خاك مجنون و مزار كوهكن تا كي؟ اگر سودا سري دارد بگو تا گرد ما گردد


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بيدل :

عافيت خواهي وداع آرزوي جاه كن شمع اين بزم از كلاه خود به كام اژدهاست


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بيدل :

عافيت ميžطلبي، بگذر از انديشه جاه شمع را آفت سر افسر زرين آمد


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بيدل :

عالم از جنون من كرد كسب همواري سيل گريه سر دادم كوه، دشت و دامان شد


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صائب تبريزي :

عالم بيžخبري، طرفه بهشتي بودهžست حيف و صد حيف، كه ما دير خبردار شديم


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بيدل :

عالم تمام خون شد و از چشم ما چكيد خوبان هنوز منكر دلهاي خستهžاند


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بيدل :

عجز طاقت كرد ما را محرم امداد غيب اختيار آنجا كه درماند توكل ميžشود


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بيدل :

عدم سايه ز خورشيد معين گرديد گر تو شوخي نكني هستي ما مبهم نيست


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بيدل :

عشق مختار است با تدبير عقلش كار نيست اين كنم يا آن كنم شايسته مختار نيست


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بيدل :

غباريم زحمت كش بادها به وحشت اسيرند آزادها


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بيدل :

غفلت ايام پيري از سر ما وا نشد سخت دشوار است بيدل تركِ خواب صبحدم


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بيدل :

غير آغوش فنا سر منزل آرام نيست كشتي ما را همان گرداب، لنگر ميžشود


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بيدل :

غير از دل آشفته به عالم نتوان يافت اين بزم، مگر حلقه آن زلف سياه است


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بيدل :

فرياد كه برديم ز ناžمحرمي خلق اندوه زبان داشتن و لال نمودن


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بيدل :

فلك كشتي به توفان شكستن داده است امشب ز جوش گريهžام ريگ ته آبند كوكبها


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بيدل :

فناي ما چمن آراي بي نقابي اوست به قدر چاك كتان ماهتاب ميžخندد


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بيدل :

قطع سر رشته پرواز طلب نتوان كرد بال اگر سلسله كوتاه كند، ناله رساست


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بيدل :

قيامت ميžžكند حسرت، مپرس از طبع ناشادم كه من صد دشت مجنون دارم و صد كوه فرهادم


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بيدل :

كجا يابد سر ما ناكسان بار سجود او مگر بر جبهه بنويسيم نام آستانش را


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بيدل :

كسي به فهم كمالم دگر چه پردازد؟ ز فرق تا به قدم عيبم، اين هنر دارم


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بيدل :

كسي كه دست به دامان التفات تو زد مقيم انجمن سايه هما گرديد


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بيدل :

كسي يا رب مبادا پايمال رشك همچشمي حنا، چندان كه بوسد پاي او، خون ميžكند ما را


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بيدل :

كشتي نه فلك اين جا به نمي طوفاني است تا تواني طرف اشك يتيمان نشوي


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بيدل :

كيست در اين انجمن محرم عشق غيور ما همه بي غيرتيم آينه در كربلاست


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بيدل :

گدايي كز سر كوي تو خاكي بر جبين مالد به تاج كيقباد و افسر قيصر كند بازي


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بيدل :

گر آرزو شكني، ميžشود عمارت دل شكست موج بود باعث بناي حباب


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بيدل :

گر مزاج كرم آن است كه من ميžدžانم عالمي را به خطاي من تنها بخشند


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بيدل :

گوش مروتي كو؟ كز ما نظر نپوشد دست غريق، يعني فرياد بيصداييم


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بيدل :

گويند بهشت است همان راحت جاويد جايي كه به داغي نتپد دل، چه مقام است


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بيدل :

ما را نميžتوان يافت بيرون از اين دو عبرت يا ناقص الكماليم، يا كامل القصوريم


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بيدل :

ما و سحر از يك جگر چاك دميديم آهي نكشيديم كه نگرفت جهان را


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بيدل :

مپسند كه امروز من گمشده فرصت در كشمكش وعده فرداي تو افتم


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بيدل :

مرا سنجيدگي ايمن ز تشويش هوس دارد ز دام بال و پر فارغ چو شاهين ترازويم


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بيدل :

مرده را بهر چه ميžپوشند چشم؟ آگاه باش خاك، خلوتگاه اسرار است و ما نامحرميم


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بيدل :

مرديم و همچنان خم و پيچ هوس به جاست از سوختن نرفت برون، تاب ريسمان


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بيدل :

مرگ ميžخندد به فهم غافل من تا ابد بي تو گر يك لحظه خود را زنده باور ميžكنم


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بيدل :

مستغني از گل است مزار شهيد عشق اي غنچه لب! تو بر سر خاكم بيا بخند


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بيدل :

مطلبي گر بود از هستي، همين آزار بود ورنه در كنج عدم آسودگي بسيار بود


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بيدل :

مكتوب عشق هرگز بي نامه بر نباشد ما و ز خويش رفتن، قاصد اگر نباشد


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بيدل :

مكن گردن فرازي، تا نسازد دهر پامالت كه ني آخر به جرم سركشيها بوريا گردد


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بيدل :

منزل خاصي نميžخواهد عبادتگاه شوق هر كف خاكي كه آنجا سر نهي سجاده است


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بيدل :

موج خجالت سر و پيداست از لب جو كز شرم قامت او گرديده آب نيمي


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بيدل :

مي پرستان از خمار آگاه بايد زيستن انتقام عشرت امروز، فردا ميžكشند


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بيدل :

ناصح! سخن ساختهžات پر نمكين است رحم است به زخمي كه تو مرهم شده باشي


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بيدل :

نسيم زلف تو صبحي گذشت از اين گلشن هنوز سلسله موج گل جنون خيز است


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بيدل :

نشئه صهبا نميžارزد به تشويش خمار در گذر امروز از آبي كه فردا آتش است


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بيدل :

نعمتي بر روي خوان عمر كم فرصت كجاست؟ همچو شبنم دست ميžشويد ز خود مهمان صبح


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بيدل :

نَفَس من به اين فسرده دلي دودِ شمع مزار را ماند


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بيدل :

نگاه از چشم حيرانم چو دود از داغ ميžجوشد قيامت ريخت بر آيينهžام برق تماشايش


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بيدل :

نگذشته است اگر ز دلم لشگر غمت داغ جگر، نشان پي كاروان كيست؟


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بيدل :

نور جان در ظلمت آباد بدن گم كردهžام آه از آن يوسف كه من در پيرهن گم كردهžام


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بيدل :

ني نقش چين، نه حسن فرنگ آفريدن است بهزادي تو دست ز دنيا كشيدن است


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بيدل :

نيرزد آينه بودن به آن همه تشويش كه هر كه جلوه فروشد، تو رنگ گرداني


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بيدل :

نيست به عالم جنون گردش رنگ عافيت هيچكس از برهنگي جامه كهن نميžكند


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بيدل :

هجوم جلوه يار است ذره تا خورشيد به حيرتم من بيدل دل از كه برگيرم


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بيدل :

هر جزوم از شكستِ دلي موج ميžزند من شيشه ريزهžام، حذر از پايماليم


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بيدل :

هر كه رفت از ديده، داغي بر دل ما تازه كرد در زمين نرم نقش پا نمايان ميžشود


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بيدل :

يا تغافل از عالم، يا ز خود نظر بستن زين دو پرده بيرون نيست ساز عيب پوشيها


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بيدل :

ياد آزادي است گلزار اسيران قفس زندگي گر عشرتي دارد اميد مردن است


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بيدل :

يك لغزش پا جاده توفيق طلب كن از زحمت چندين ره و فرسنگ برون آ

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[Persian] شعري از شوريده شيرازي

شعري از شوريده شيرازي

هرچه كني بكن ، مكن
ترك من اي نگار من

هرچه بري ، ببر ، مبر
سنگدلي به كار من

هرچه بري ، ببر، مبر
رشته الفت مرا

هرچه كني ، بكن ، مكن
خانه اختيار من

هرچه روي برو ، مرو
راه خلاف دوستي

هرچه زني ، بزن ، مزن
طعنه به روزگار من





Monday, August 16, 2004

[Persian]

ما ز ياران چشم ياري داشـتيم
خود غلط بود آن چه ما پنداشتيم
تا درخـت دوسـتي برگي دهد
حاليا رفتيم و تخمي کاشـتيم
گـفـت و گو آيين درويشي نبود
ور نـه با تو ماجراها داشـتيم
شيوه چشمت فريب جنگ داشت
ما غلط کرديم و صلح انگاشـتيم
گلبن حسنت نه خود شد دلفروز
ما دم همت بر او بگـماشـتيم
نکتهžها رفت و شکايت کس نکرد
جانـب حرمـت فرونگذاشتيم
گفت خود دادي به ما دل حافظا
ما محصل بر کسي نگماشـتيم








Saturday, August 14, 2004

[Persian]

فاصله ها

باز من آمده ام

آمدم تا كه گشا يئ گره از عقده دل

آخر اين دل چه كند تنگ شدست

چهره ام از غم دوري تو بي رنگ شدست

به تو اي خوب پناه اوردم

باز هم عطر تنت رقص كنان

با گل دامن باد آويزد

تا كه در حجم فضا صد بهار انگيزد

باز هم رشته اميد زمان

واصل بين همه فاصله هاست

واصل بين همه فاصله هاست...

آزاده يزدانيك (مرداد۸۳)





Tuesday, August 10, 2004

[Persian] آگهي ازدواج

نظر به عزم راسخي که براي اقدام به يک ازدواج کاملاً قانوني دارم ، و با توجه به اين نکته که هيچ ازدواجي بدون مشارکت جنس مونث امکانپذير نيست، خاضعانه در نهايت افتخار و خوشوقتي و احساس رضايت کامل از کليه بيوه گان و دوشيزه گان محترمه استدعا مي شود لطف بفرمايند مراتب ذيل را مورد عنايت قرار دهند :
نخست اينکه اينجانب يک مرد مي باشم . اين امر مسلماً براي خانم ها پر اهميت مي باشد. قــدم دو آرشين و هشت ورشوک [ ۱۷۶ سانتي متر ] است . جوان هستم . هنوز تا ايام کهولت زياد فاصله دارم ، درست به اندازه فاصله مرغ پاچله از عيد پطرس. اصل و نسب دار مي باشم . زيبا نيستم ، اما خيلي زشت هم نمي باشم. عدم زشتي ام به حدي است که بارها در تاريکي مطلق با اشخاص بسيار زيبا عوضي گرفته شده ام . چشم هايم ميشي است . روي گونه هايم ( افسوس!) چال نمي افتد. از دندان هاي آسيابم دو تايش خراب است. از عهده خوشامدگويي هاي ظريف بر نمي آيم اما به تنابنده اي هم اجاره نمي دهم در استحکام عضلاتم شک کند. نمره دستکشم هفت و سه چهارم مي باشد . بجز پدر و مادري فقير ولي نجيب چيزي ندارم .اما آينده ام کاملاً درخشان است. دوستدار پروپاقرص خوشگل ها عموماً و خدمتکارها خصوصاً مي باشم . به همه چيز اعتقاد دارم . توفيقم در مقوله ادبيات به حدي است که از مطالعه ستون صندوق پست مجله « استر کازا » بندرت گريه ام مي گيرد . خيال دارم در آينده رماني به رشته تحرير درآورم که قهرمانش ( که زن زيباروي معصيت کاري خواهد بود) همسر آينده خود اينجانب باشد. در شبانه روز دوازده ساعت مي خوابم . بربروار پرخورم . تنها در جمع دوستان ودکا مينوشم. آشنايان خوبي دارم دوتاشان اديبند يکيشان شاعر يکيشان مفتخور ، که از طريق صفحات جريده شريفه « روسکايا گازتا » به تعليم ابناء بشر مشغولند شاعران محبوبم عبارتند از پوشکاريف و گاهي هم خودم عاشق پيشه ام اما حسود نيستم . قصد دارم طبق شرايطي که خود و طلبکارانم مي دانيم ازدواج کنم.
اين بود مشخصات اينجانب . و اما مشخصات همسر آينده ام:
بيوه باشد يا دوشيزه ( بر حسب اينکه کدام بيشتر مناسب حال باشد ) زير سي ساله و بالاي پانزده ساله کاتوليک نباشد ، يعني به يقين بداند که در اين دنيا آدم مصون از گناه وجود ندارد . يهودي هم پذيرفته نمي شود . دختران يهودي هميشه از آدم مي پرسند:« چرا يک خط در ميان مي نويسي؟ چرا نمي روي دم دست بابام پول در آوردن ياد بگيري ؟ » ، و اينجور حرفها اصلاً به مزاج اينجانب نمي سازد. موطلايي باشدو چشم آبي و ( لطفاً در صورت امکان) ابرومشکي . نه رنگ پريده باشد نه سرخرو ، نه چاق باشد نه لاغر ، نه دراز باشد نه کوتاه . تو دل برو باشد و جني هم نباشد. سرش تراشيده نباشد ، وراج نباشد و مدام کنج خانه ننشيند. ضمناً بايد خوش خط باشد چون به يک نساخ ماهر نيازمندم. البته کار نسخه برداريش زياد نيست . به مجلاتي که با آنها همکاري دارم علاقه داشته باشد و رويه آنها را سرمشق خود قرار دهد
مجلات « تفريح » و « تازه هاي روز » و « نانا » را نخواند و از سرمقاله هاي « نامه هاي مسکو » متاثر نشود و از خواندن سر مقالات « ساحل» هم غش و ضعف نکند .
بايد بتواند آواز بخواند ، برقصد ، بنويسد ، بپزد ، بريان کند ، بلبل زباني کند ، شيرمال بپزد ( اما گوش مال ندهد) ، براي شوهر جانش پول قرض بگيرد . با استفاده از امکانات شخصي خوش سر و لباس باشد ، و کاملاً و از هر نظر مطيع باشد .
نبايد تنش را بخاراند ، جير و وير کند ، جيغ بکشد ، فرياد بزند ، گاز بگيرد ، دندان نشان بدهد ، ظرف و ظروف بشکند يا در خانه براي دوستان پشت چشم نازک کند .
بداند که شاخ زيبنده آدم نيست و هر چه کوتاهتر باشد بهتر است و براي کسي که در ازاء دريافت وجوهات زير بار اينجور امور مي رود خطرش کمتر است .
اسمش نبايد ماترُينا يا آکولينا يا آودوتيا يا اسمهاي اُملي ديگري از اين قماش باشد. اصلا بهتر است اسم با اصل و نسب دارتري داشته باشد مثل اوليا ، لنوچکا ، ماروسکا ، کاتيا ، ليپا و غيره .
ميان او و مادرش که همانا مادر زن مکرمه اينجانب است به اندازه اينجا تا پشت کوه قاف فاصله باشد ( در غير اينصورت اينجانب هيچ تضميني نخواهم داد )
داشتن حداقل ۲۰۰۰۰۰ روبل نقره از اهم واجبات است
ناگفته نماند که در صورت موافقت طلبکاران اينجانب ، مي توان در ماده اخير اصلاحاتي به عمل آورد .


آنتوان چخوف سال ۱۸۸۰